क्यों आया वो सरहद पार से,
दिल रोये हैं उसके वार से,
घरों के बुझ गये चिराग ये,
क्यों फैली है अब ये आग रे।
जिंदगी हो गयी है अब सस्ती,
क्यों बेबसी पे मौत है हस्ती,
आँसुओं की नदियाँ हर जगह थी फैली,
कोरोना की गूँज जब ज़ोर से बोली।
कंमुनिलिसम् क्या उन्हे यही सिखाता,
कौन है जो उन्हे ज़हर पिलाता,
जग में ये विनाश नहीं हो पाता,
काश ‘ वायरस बनाने वाले ‘ को कोई इंसान बनाता,
काश ‘ वायरस बनाने वाले ‘ को कोई इंसान बनाता।।